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कविता

बँटवारे

श्यामसुंदर दुबे


आँधी ऐसी
आई घरों में
जी से चिपके, तहस-नहस
            सामान हो गए।

रिश्तों की चूलें
हिल उट्ठीं
पत्ते झड़े वंश-वृक्षों के
टुकड़े-टुकड़े बँटवारे में
नक्शे बिगड़े
दहलानों, आँगन कक्षों के

मिश्री जैसे
बोल-बोलते -
होंठ-जीभ अब
            खींचे तीर-कमान हो गए।

एटम बम-सा
रोज फूटना
अंतःपुर सड़कों आ जाते
चिथड़े-चिथड़े
धुआँ-धुआँ हो
छत पर काले बादल छाते।

जहरबाद बनते
जाते जो
सपने थे नासूर
            आज वे कैंसर बनी गठान हो गए।
 


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