आँधी ऐसी
आई घरों में
जी से चिपके, तहस-नहस
सामान हो गए।
रिश्तों की चूलें
हिल उट्ठीं
पत्ते झड़े वंश-वृक्षों के
टुकड़े-टुकड़े बँटवारे में
नक्शे बिगड़े
दहलानों, आँगन कक्षों के
मिश्री जैसे
बोल-बोलते -
होंठ-जीभ अब
खींचे तीर-कमान हो गए।
एटम बम-सा
रोज फूटना
अंतःपुर सड़कों आ जाते
चिथड़े-चिथड़े
धुआँ-धुआँ हो
छत पर काले बादल छाते।
जहरबाद बनते
जाते जो
सपने थे नासूर
आज वे कैंसर बनी गठान हो गए।